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मुलेठी के फायदे और नुकसान,स्वास्थ्य लाभ, सुझाव,सावधानियां और खुराक

 जीवन है तो सब कुछ है, आयु है, स्वास्थ्य है, तभी संसार में किसी अन्य वस्तु की कल्पना की जा सकती है, यही कहा जाता है "जान है तो जहान है"। और इसी तथ्य को ऋषियों ने बहुत पहले ही समझ लिया था और उन्होंने जड़ी-बूटियों तथा अन्य पदार्थों के औषधीय गुणों को संकलित कर एक अद्भुत विज्ञान को जन्म दिया जिसकी तुलना वेद जैसे सर्वोच्च ग्रंथ से की गई और इसका नाम आयुर्वेद रखा गया।

लहठी जिसे मुलेठी भी कहते हैं, बहुत उपयोगी और प्रसिद्ध जड़ी-बूटी है। यह दो वर्ष तक खराब नहीं होती और विभिन्न नुस्खों में औषधि के रूप में इसका प्रयोग किया जाता है।

इसका अर्क भी बनाया जाता है जिसे सत मुलेठी या रुबे सुस कहते हैं। यह मीठा और ठंडा होता है और किसी भी मौसम में इसका प्रयोग किया जा सकता है। भावप्रकाश निघण्डु में लिखा है कि

यष्टि हिम गुरुः स्वादिचक्षुष्यबलवर्णकृत्।

सुस्निग्धा शुक्रला केशयस्वर्य पित्तनीलस जित घाव हरण विशाच्छर्दितृष्णगलनि क्षयपाहा।

 गुण- यह शीतल, शीतवीर्य, ​​भारी, स्वादिष्ट, नेत्रों के लिए हितकारी, बल व वर्ण के लिए उत्तम, चिकना, वीर्यवर्धक, केश व स्वर के लिए हितकारी तथा पित्त, वायु व रक्त विकारों को नष्ट करने वाली, घाव को दूर करने वाली, विष, वमन, तृष्णा, पश्चाताप व क्षय को दूर करने वाली है तथा प्यास, खांसी, वमन, दमा व सिरदर्द में हितकारी, नेत्रों के लिए ज्वरनाशक, त्रिदोष को नष्ट करने वाली तथा घाव को भरने वाली है।

 परिचय- मुलहठी आमतौर पर पंसारी व किराने की दुकानों पर आसानी से मिल जाती है। इसका पौधा 6 फुट तक ऊंचा होता है। वैसे तो यह भारत के जम्मू-कश्मीर व देहरादून में उगाया जाता है, परंतु इसकी लकड़ी भी विदेशों से आयात की जाती है। इस पौधे की जड़ बहुत मीठी होती है। इसकी जड़ व तने का ही अधिकतर उपयोग होता है। यह लकड़ी के समान होती है तथा इसके टुकड़े को मुंह में रखकर चूसने से मीठा स्वाद आता है। इसमें पाया जाने वाला प्रमुख तत्व ग्लाइसीराइजिन  है, जो मीठा होता है। इसके अलावा इसमें ग्लूकोज, सुक्रोज, मैनाइट, स्टार्च, शतावरी, कड़वा पदार्थ, राल, एक प्रकार का उड़नशील तेल तथा एक वर्णक तत्व पाया जाता है। इसका उपयोग आयुर्वेदिक, एलोपैथिक तथा यूनानी चिकित्सा पद्धति में किया जाता है। यह स्वाद में मीठा तथा शीतवीर्य होता है, अत: इसका सेवन किसी भी मौसम में किया जा सकता है।



 उपयोग- इसका प्रयोग प्रायः औषधियों, मधुर जुलाब, मीठी गोलियों, खांसी की गोलियों, गले की खराश तथा स्वरभंग को ठीक करने की गोलियों तथा बल एवं ओज बढ़ाने के उपायों में किया जाता है। इसका प्रयोग आयुर्वेदिक औषधियों मधुयष्टादि चूर्ण, यष्टादि वस्त्र, यष्टि माधवादि तेल में किया जाता है। इसे मुंह में रखकर चूसने से लार का स्राव बढ़ता है, लार आसानी से निकलती है जिससे खांसी से राहत मिलती है, यह गले की खराश तथा स्वरभंग में लाभकारी है। इसमें रेचक गुण होते हैं, अत: इसका प्रयोग रेचक उपायों में किया जाता है। यह महिलाओं में मासिक धर्म चक्र की अनियमितता को नियंत्रित करता है। इसका उपयोग बालों और आँखों के लिए बहुत फायदेमंद साबित होता है। यहाँ कुछ परीक्षण किए गए औरविद्यां विशाद च बुद्धिः ज्ञान ध्यान तप योग की क्रिया का फल है जो सुख, सुमति वाणी और सुहावने कर्म, अपने वश में मन, शुद्ध, पापरहित और सात्विक बुद्धि देता है तथा जो ज्ञान प्राप्त करने में समर्थ है, तप करता है और जो योगाभ्यास में सदैव तत्पर रहता है उसे कोई शारीरिक या मानसिक रोग नहीं होता। अब यह हम पर निर्भर करता है कि हम क्या करते हैं। इतनी जानकारी होने के बाद भी यदि हम इसके विपरीत आचरण करेंगे तो हमें उसका परिणाम भोगना ही पड़ेगा। लेकिन तब हम यह नहीं कह सकेंगे कि यदि हमें इसकी जानकारी होती तो हम ऐसा नहीं करते। प्रस्तुत हैं लाभकारी सिद्ध होने वाले घरेलू उपाय समाधान शरीर को बलवान, छरहरा और शक्तिशाली बनाने की पौष्टिक औषधि कोई भी आयु वर्ग, पुरुष या महिला सुबह और रात को सोने से पहले 5 ग्राम बारीक पिसा हुआ मुलहठी का चूर्ण, आधा चम्मच शुद्ध घी और डेढ़ चम्मच शहद मिलाकर चाट लें। फिर मिश्री मिले ठंडे दूध को घूंट-घूंट करके पिएं। यह प्रयोग कम से कम 40 दिन तक करें। इससे बहुत लाभ होता है।

 खांसी-खांसी और कफ होने पर यह चिपचिपा और सूखा होता है। अगर होता भी है तो बार-बार खांसने पर बड़ी मुश्किल से निकलता है। रोगी तब तक खांसता रहता है जब तक कफ गले से बाहर न आ जाए। 5 ग्राम मुलहठी के चूर्ण को 2 कप पानी में डालकर उबालें जब तक आधा कप पानी न रह जाए। इस पानी को पी लें। आधा सुबह और आधा शाम को सोने से पहले पिएं। यह प्रयोग 3-4 दिन तक करना चाहिए। इसे दोबारा गर्म करने की जरूरत नहीं है, सिरिंज को ढक कर रखें। इस प्रयोग से बलगम पतला और ढीला हो जाता है, जो आसानी से बाहर निकल जाता है और खांसी और दमा के रोगी को बहुत आराम मिलता है।

मुंह के छालों: के लिए मुलहठी का प्रयोग इसका एक टुकड़ा मुंह में रखकर चूसने से मुंह के छाले ठीक हो जाते हैं। इसके चूर्ण को थोड़े से शहद में मिलाकर चाटने से भी आराम मिलता है।

हिचकी: मुलहठी के चूर्ण को शहद के साथ चाटने से हिचकी बंद हो जाती है। यह उपाय वात और पित्त के लिए लाभकारी है। यह शमन का भी काम करता है।

उल्टी: पेट में एसिडिटी और पित्त बढ़ने पर जी मिचलाना, बेचैनी और घबराहट महसूस होना, उल्टी करने का मन करना लेकिन ऐसा नहीं होता। कभी-कभी सिर में दर्द भी होता है, जो उल्टी होने के बाद ही ठीक होता है।

उल्टी लाने के लिए 2 चम्मच (0 ग्राम) मुलेठी के चूर्ण को 2 कप पानी में डालकर काढ़ा बना लें। जब आधा कप पानी रह जाए तो इसे आंच से उतार लें और ठंडा होने दें। इसमें 3 ग्राम पिसी हुई राई का चूर्ण मिलाकर पीने से उल्टी होती है जिससे पेट में जमा पित्त या कफ बाहर निकल जाता है और स्थिति हल्की हो जाती है। रोगी को बहुत आराम मिलता है। , विषाक्त प्रभाव, अपच, एसिडिटी, खांसी और कफ में वृद्धि या छाती में कफ जमा होने पर यह उपाय बहुत फायदेमंद है।

वात: के प्रकोप से पेट में दर्द और शूल होने पर ऊपर बताए गए मुलेठी के काढ़े को आधा सुबह और आधा शाम को लें। ऐसा करने से बदी के कारण होने वाला पेट दर्द ठीक हो जाता है।

मासिक धर्म: के दौरान 5 ग्राम मुलेठी के चूर्ण को थोड़े से शहद में मिलाकर चटनी बनाकर चाट लें और फिर ऊपर से मिश्री मिला ठंडा दूध घूंट-घूंट करके पी लें, इससे मासिक धर्म नियमित हो जाता है। इसका सेवन प्रतिदिन सुबह और शाम कम से कम 40 दिनों तक करना चाहिए। 

हृदय रोग: हृदय पर वात के आक्रमण का दबाव पड़ने से हृदय में दर्द होता है। आधा चम्मच मुलहठी चूर्ण और आधा चम्मच कुटकी चूर्ण (3-3 ग्राम) मिलाकर सुबह-शाम गुनगुने पानी के साथ सेवन करने से लाभ होता है। 

बल-5 ग्राम मुलहठी चूर्ण और 5 ग्राम अश्वगंधा चूर्ण को थोड़े से घी में मिलाकर चाट लें। फिर एक गिलास मिश्री मिला मीठा दूध पी लें। ऐसा लगातार 60 दिन सुबह-शाम करने से बल और स्फूर्ति खूब बढ़ती है और शरीर मजबूत और सुडौल बनता है। ऐसा होता है। यह परखा हुआ है।


(किसी विशेष प्रयोग से पहले अपने चिकित्सक की सलाह अवश्य लें।)

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